Saturday 9 August 2014

आँखों में है मेरी जो थोड़ी सी नमी

 क्या बताऊँ तुम्हें बस हैं तुम्हारी ही कमी
याद करके तुम्हें नहीं थकता है ये दिल
या खुदा आई है ये कैसी मुश्किल
तुम्हारी आँखों का वो छलकता पानी
लफ्ज़ निकलते थे जो तुम्हारी ज़ुबानी
आज भी याद हैं मुझे वो सुबह और शाम
जो मैं करता था सिर्फ तेरे ही नाम
वक़्त आया लेकर क्या कहर
तेरे बिना जीना हो गया ये ज़हर
तू ही मेरी आँखों में मेरे ख्वाबों में है
तू ही कुछ सवालों में कुछ जवाबों में है
याद करता है तुझही को ये मेरा दिल
कभी आकर तू भी मुझसे यूं ही मिल
तोहफे में दूंगा तुझको ये ज़मीं ये आसमां

तू ही तो है मेरे लिये सारा जहाँ

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