Wednesday 20 August 2014

कविता सा कोई अपना


अंजानी सी है वो,
कोई हकीकत या कोई सपना,
है प्यारी सी ग़ज़ल वो,
या कविता सा कोई अपना,
गीत है दिलों का,
या चांदनी से सजी कोई रात,
वो मुस्कुराहट है चहरे की
या भीगी हुई बारिश का साथ,
प्यार से सजा कोई गीत है
या दो दिलों के मिलने का अंदाज़,
रंग है वो खुशियों का
या सुरों से सजा कोई साज़,
संगेमरमर सी है काया जिसकी
है बेपनाह खूबसूरती से सजा ताज,
तस्वीर है किसी कलाकर की
या कल्पना का कोई ख्वाब,
आँखें हैं गहरी झील सी
या ठहरे हुए जज़्बात,
ज़ुल्फ़ों में सजे हैं सितारे हज़ार
या जादू चला है हुस्न का बेशुमार
अंजानी सी है वो
या कविता जैसा खूबसूरत एहसास कोई अपना.


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