Saturday 9 August 2014

तन्हा



आग से धुले और पानी से जले है,
हम तो मरने से पहले भी कई बार मरे है !
तलाश थी जिस आरज़ू की अब तक,
आज भी तन्हा उसी राह पर खड़े है !
सौ बार किया मैंने उल्फत का बया,
ये दर्द उनके दिल तक न गया,
मेरी बर्बादी में उनके एहसान बड़े है,
आज भी तन्हा उसी राह पर खड़े है !
मैंने तय किया जिसके लिए शहरो का सफ़र,
उसने दो कदमो में किया मेरा प्यार दफन,
मेरी मौत के सामान मेरे सामने पड़े है,
आज भी तन्हा उसी राह पर खड़े है !
क्या आज वो रात होगी ?
ये ज़िन्दगी शायद अब मौत के बाद होगी...
मेरे अपने ही मेरी खुशियों से लडे है,
इसीलिए, आज भी तन्हा उसी राह पर खड़े है !


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