Monday 2 February 2015

पंक्तियां

. जिंदगी की बाजी में जीत उसी के गले का 
हार बनती है जिसको हंसते हंसते हार को 
गले लगाने का हूनर आता हो |

तुमने स्पर्श किया 

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मेरी रुह को 
तब 
जब
तेरे और मेरे जिस्म में था
कई गज का फासला
आज भी
उस पल की यादें है जेहन में
मानो
कल की
ही हो बात
बीत गये कई जमाने
पर
मैं जी रही हूँ
आज भी
उन्हीं पलों के
इर्द गिर्द
जब
..................
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तुमने मुझे स्पर्श किया



कौन कहता है ? 
खामोशी खामोश रहती है 
मैंने देखा है -
सागर के भीतर से 
सुनामी आते हुए .....


कौन कहता है ? 
कसूरवार को ही सजा मिलती है .....
मैंने देखा है 
गेंहु के साथ 
अक्सर घुन को पिसते हुए .

मैं
भूल चूकी हूँ सुख में हँसना 

और
दुख में रोना
भूल चूकी हूँ
रात में सोना
और
दिन में जगना
भूल चूकी हूँ
बच्चों की तरह मचलना
और बड़ों का बड़प्पन
भूल चूकी हूँ
शब्दों को जज्बात देना
और
मौन को आकार देना
भूल चूकी हूँ
अपनों पर विश्वास करना
और
सपनों का अहसास करना
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सोचते तो होंगे तुम
...............
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किंतु
मेरी रोजमर्रा की आम जिंदगी
देख तुम हो रहे होंगे
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आहत
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" मेरे दिये
दर्द के पहाड़ को
सीने पर ढोकर भी
है
यह
बनी हुई है क्यों अब तक
फौलाद ??????? "
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अब सोचते तो होंगे तुम ....

कौन कहता है ? 
वो बस मुस्कराती है ...
मैंने देखा है - 
भोर में 
उसके भीगे तकीये को 

सिर जहाँ झुक जाए वो है रब का रुप ,
इसमें भला इबादत की बात क्या ?
बचपन का दूजा नाम है शैतानी
इसमें भला शरारत की बात क्या ?
मदद करना है इंसा की ही पहचान ,
इसमें भला शराफत की बात क्या ?
प्रकृति के साथ खिलवाड़ का मिलेगा खामियाजा ,
इसमें भला कयामत की बात क्या ?
तेरा ही है दिल मेरा वर्षों से सहेजा ,
इसमें भला अमानत की बात क्या ?
तू ले जा आके मुझको मैं तो हूँ बस तुम्हारी
भला इसमें अब इजाजत की बात क्या ?

करके खुद को खाली जिन्होंने भरी हमारी झोली
दे दी हमें आजादी खाकर सीने पर गोली
उन मतवालों को है आज शत शत वंदन मेरा
हमें रंगीन बनाने जिन्होंने खेली खून की होली ||
आज मगर इन मतवालों के मोती धूल में बदले
फूल बिछाए जो राहों में वो अब शूल में बदले
कनकलता देवान के त्याग को क्यों हम भूले बैठे हैं
आतंक की लपटों में जलकर भी क्यों यूं हम ऐठे हैं
गांधी पटेल सुभाष का भारत कहाँ गया अब बोलो ना
कब तक यूं ही खून बहेगा अब तो तुम मुंह खोलो ना
एक देश के वाशिंदे हम एक हमारी भारत माँ
किन्तु देख हमारी हालत अश्क बहाती हिन्द की माँ
भाई का भाई से झगडा अस्मत लूटती बहनों की
बोझ लग रहे जनक औ जननी कीमत रह गई गहनों की
सत्य अहिंसा प्रेम की भाषा धर्म हमें है सिखलाते
किन्तु इसी के नाम पर कुछ कहर सभी पर बरपाते
कहर बहते संतानों का खुद उसी के नाम पर
डर और आतंक के पहरे कोई कैसे जाए काम पर
आतंकवाद की ये आंधी अब कितने चिराग बुझाएगी
बनना शोलो की ज्वाला जो आंधी में टिक पाएगी
देश द्रोह के इन पौधों को समूल नष्ट करना होगा
देश प्रेम की सुमन सुगंध को हर दिल में भरना होगा
राजस्थानी , बंगाली ना आसामी हमें कहना ( बनना ) है
भारत के रहने वाले हम हमें भारतीय ही बनना है
आओ हम सब मिलकर के अब आतंकवाद हटायेंगे
हिन्द देश की माटी को फिर प्रेम से मह्कायेंगे ||

काश देश द्रोह की बिमारी जा पाए
काश देश प्रेम की खुमारी आ जाये
शहीदों को होगी फिर ये सच्ची श्रद्धाजली
काश अमन की यहाँ सुनामी आ जाये

कौन कहता है ?
जख्मों से बचने को 
छुरी सम्भलकर चलाने को 
मैंने देखा है - 
शब्दों के तीरों को 
दिल को
छलनी करते हुए ..

कौन कहता है ?
याद रखना मुश्किल होता है ..
मैंने देखा है -
दिल को 
उसको 
भुलाने में
रोते हुए ......

कौन कहता है ? 
बच्चे नादान होते हैं .....
मैंने देखा है -
बड़ों के झगड़ों को 
बच्चों को 
सुलझाते हुए ...

बिन कहे शब्द सुने हैं कभी
बिन धागे लिबास बुने हैं कभी
बिन लिखी दास्ताँ पढ़ी है कभी
बिन माटी मूरत गढ़ी है कभी
बिन बहे आंसू देखे हैं कभी 
बिन कंकड़ झील में तूफ़ान देखे हैं कभी
उपरोक्त के मायने समझ आयेंगे पल में
गर माँ की ममता की सरिता में गोता लगाया है कभी ||

कैसे कह दूँ ???
तुमसे प्रेम मैं करती हूँ
कैसे कह दूँ ?
मैँ आज भी तुम पे मरती हूँ
कैसे कह दूँ ?
तुम बिन जीना मौत से भारी
पर हर पल जीने की तैयारी
कैसे कह दूँ ?
मम अँखियों में तेरी सूरत
इस दिल को है तेरी जरुरत
कैसे कह दूँ ?
मंजिल तुम हो
मैं हूँ जिंदा , वजह भी तुम हो
तुम क्या हो मेरे , मैं क्या हूँ तुम्हारी ?
ये बातें रह गई अब आपस की हमारी
तेरी मेरी अब राहें अलग है
नजदीकी में दूरी बहुत है
कैसे पर ये खुद को कह दूँ
तुम ही बोलो ......
कैसे कह दूँ ........????

कैसे बताऊ ?
कैसे हो तुम
ऐसे हो या वैसे हो ?
बहती दरिया जैसे हो
खिलते फूल सा रूप तुम्हारा
या फिर पूनम सा रूप सँवारा
उगते सूरज की हो लाली
या हो दीपों की दिवाली
ढ़लते रवि की हो सुंदरता
या हो समीर की चंचलता
पर
तुम तो शायद ऐसे ना हो
और शायद वैसे भी ना हो
अँखियों के आगे आते तुम
पर पल में ओझल होते तुम
मानो की तुम हो ओस की बूँद
मानो की तुम हो शबनम की बूँद ....


जब जहाँ में कोई गम सताये तुम्हें
इस जँहा में जब कोई रुलाए तुम्हें
मेरे घर की राहें खुली ही मिलेगी ,
अपने ही जब कभी भुलाए तुम्हें |
मेरे मैदान में तेरा स्वागत है दोस्त
जिंदगी की बाजी जब हराए तुम्हें
मेरी खुशियों पे तेरा हक है सदा
तेरी खुशियाँ ही जब चिढ़ाए तुम्हें
मेरे दिल की दुआओं में तुम हो बसे
यह जँहा जब दुआओं से भगाए तुम्हें |

मुहब्बत है मुहब्बत में भला अपना पराया क्या
अभी करलो अभी जी लो भला नकदी बकाया क्या
कि इस अहसास को जी कर जरा तुम नैन तो खोलो
सजन की कैद में आ कर भला पकड़ा छुडा़या क्या




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